2008/06/04

हमारी अपनी सुरक्षा प्रणाली औरउसके जुझारू सैनिक-6

हमारी अपनी सुरक्षा प्रणाली औरउसके जुझारू सैनिक-६

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kal ke अंक से आगे....


बी लिंफोसाइट्स भी दो प्रकार के होते हैं। एक तो वे जो अपने संपर्क में आए एंटीजेन-विशेष के विरुद्ध प्रतिरक्षात्मक कार्रवाई के लिए सीधे तौर पर सक्रिय हो जाते हैं एवं विशिष्ट प्रकार के ग्लाइकोप्रोटीन्स (इन ग्लाइकोप्राटीन्स को इम्युनोग्लोबिन्स या फिर एंटीबॉडीज़ के नाम से भी जाना जाता है) का उत्पादन करने लगते हैं और दूसरे वे जिन्हें सक्रिय करने के लिए विशेष प्रकार के टी हेल्पर लिंफोसाइट्स सेल्स की सहायता की आवश्यकता होती है। पहले प्रकार के बी लिंफोसाइट्स की संख्या बहुत कम होती है। अधिकांश बी लिंफोसाइट्स सक्रियता के लिए टी सेल्स पर आश्रित ही होते हैं। अस्थिमज्जा में बनने वाले बी लिंफोसाइट्स एक प्रकार से निष्क्रिय एवं अनुभवहीन कोशिकाएँ होती हैं। जब ये कोशिकाएँ परवर्ती लिंफ्यॉड अंगों में आती हैं तो घुलनशील प्रकार के एंटीजेन-विशिष्ट को स्वयं में आत्मसात कर लेती हैं। यदि ये बी सेल्स पहले प्रकार के हैं तो इतना काफ़ी है। ये एंटीजेंस ही इन कोशिकाओं को सक्रिय कर देते हैं और ये एंटीबॉडी का उत्पादन करने लगती हैं। और यदि ये दूसरे प्रकार के होते हैं, तो ये आत्मसात किए गए एंटीजेन को मेजर हिस्टोकांपैटैबिलिटी कॉमप्लेक्स क्लास २ प्रकार के विशेष प्रोटीन से युक्त कर परिमार्जित करते हैं एवं इस पुन: अपने आवरण पर स्थापित कर देते हैं। यह कॉम्लेक्स समान संरचना वाले विशेष टी हेल्पर कोशिकाओं द्वारा पहचान लिए जाते हैं। टी हेल्पर सेल्स इनसे जुड़ कर साइटोकाइन्स प्रकार के रसायन का उत्पादन करते हैं जिसके फलस्वरूप बी लिंफोसाइट्स सक्रिय हो जाते हैं एवं विभाजित होने के साथ इस एंटीजेन विशेष के विरुद्ध एंटीबॉडी संश्लेषित करने वाले प्लाज़्मा सेल्स (इफेक्टर सेल्स) में परिवर्तित हो जाते हैं। इनमें से कुछ मेमोरी सेल्स में भी परिवर्तित हो जाते हैं। दूसरी बार उसी प्रकार के एंटीजेन का सामना होने पर ये त्वरित गति से एवं पहले की तुलना में काफ़ी तीखी प्रतिकिया व्यक्त करते हैं फलस्वरूप उन्हें उत्पादित करने वाले जीवाणुओं का तुरंत सफ़ाया हो जाता है।
चाहे ये बी लिंफोसाइट्स प्रहले प्रकार के हों या दूसरे प्रकार के, इनके द्वारा प्रतिरक्षा का तरीका एंटीबॉडी उत्पादन के माध्यम से ही होता है। उत्पादन के पश्चात या तो ये एंटीबॉडीज़ स्वतंत्र रूप से प्लाज़्मा में विचरण करते रहते हैं या फिर कोशिकाओं के आवरण से युक्त हो जाते हैं। इन एंटीबॉडीज़ या इम्युनोग्लाबिन्स की संरचना में एमीनो एसिड्स से निर्मित चार पॉलीपेप्टाइड शृंखलाओं का उपयोग होता है, जिनमें दो लंबी एवं भारी शृंखलाएँ होती हैं और दो छोटी तथा हल्की शृंखलाएँ होती हैं। अंग्रेज़ी के वाई अक्षर' के आकार में व्यस्थित इन अणुओं के शिखर अंश की संरचना इस प्रकार की होती है कि यहाँ एंटीजेन-विशेष के अणु चाभी-ताले के समान एक-दूसरे से युक्त हो कर निष्प्रभावी हो जाते हैं। एंटीजेंस के निष्प्रभावी होते ही जीवाणुओं के सफ़ाये का रास्ता खुल जाता है। या तो ये जीवाणु एक दूसरे से चिपक कर थक्के के रूप में नष्ट होने लगते हैं या फिर इनके ऊपर ऐसी तह बनने लगती है जिसके बाद भक्षक कोशिकाओं द्वारा इनका भक्षण आसान हो जाता। इसके अलावा ये एंटीबॉडीज़ जीवाणुओं द्वारा श्रावित विषाक्त रसायनों को निष्क्रिय करने में भी सहायक होते हैं।

[जारी है........]

-डॉ.गुरु दयाल प्रदीप

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