2008/06/04

हमारी अपनी सुरक्षा प्रणाली औरउसके जुझारू सैनिक-8[अन्तिम भाग]

हमारी अपनी सुरक्षा प्रणाली औरउसके जुझारू सैनिक--[अन्तिम भाग]

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कल के अंक से आगे .....

किस्से और भी हैं एवं उनसे जुड़ी बारीकियाँ भी और हैं! कहाँ तक सुनाएँ? आइए यहीं इस कथा का अंत किया जाए। भला किस महाभारत या स्टार-वार से कम रोमांचक है यह जीवाणुओं और हमारी सुरक्षासेना का युद्ध? महाभारत तो अट्ठारह दिन में समाप्त हो गया स्टारवार के एपीसोड्स भी कुछ ही समय में समाप्त हो जाते हैं, लेकिन यह युद्ध तो आजीवन चलता रहता है। इस युद्ध में अक्सर हम ही जीतते हैं परंतु यदा-कदा जीवाणु भी जीत जाते हैं। प्रकृति प्रदत्त इस प्रतिरक्षा तंत्र रूपी इस महावरदान को बनाए रखना एवं इसे और भी मज़बूती देना मारा धर्म है। ताज़े फल-फूल एवं हरी-भरी सब्ज़ियों से भरपूर संतुलित भोजन के साथ नियमित जीवन ही इस तंत्र को मज़बूत रखने का सर्वोत्तम उपाय है। एक शक्तिशाली सेना के लिए यह आवश्यक है कि इसे अच्छे खान-पान के साथ लगातार युद्ध का प्रशिक्षण मिलता रहे। स्वच्छता के साथ जीवन बिता कर हम रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं एवं उनके द्वारा उत्पन्न रोगों से बच तो अवश्य सकते हैं लेकिन यह तरीका हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करता है। इसमें मज़बूती जीवाणुओं का सामना करने से ही आती है। यही इनका युद्धाभ्यास है। स्वच्छता अच्छी बात है, परंतु इसकी अति भी बीमारियों को निमंत्रण देती है। जब तक आप स्वच्छ वातावरण में रह रहे हैं तब तक तो ठीक है लेकिन जाने-अनजाने कभी यदि आप का सामना गंदगी से हो गया तो आप की ख़ैर नहीं।
आप के प्रतिरक्षा तंत्र में इनका सामना करने की क्षमता कम हो चुकी होती है और आप को बीमारियाँ घेर सकती हैं। आज कल एलर्जी आदि जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं, विशेषकर बच्चों में। यह सब कमज़ोर पड़ते प्रतिरक्षा तंत्र के कारण ही है।
ऐसा मेरा नहीं, अमेरिकी वैज्ञानिकों का मानना है। युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के हेल्थ सिस्टम के वैज्ञानिक मार्क मैक्मोरिस, एम.डी. एवं उनके सहयोगिया का तमाम अनुसंधान के बाद ऐसा कह रहे हैं। अपने देश में तो ख़ैर, धूल-मिट्टी में खेलकर बड़े होने को सर्वोत्तम माना जाता है। शरीर हर दृष्टि से मज़बूत रहता है। इसका मतलब यह नहीं कि सब कुछ प्रकृति पर छोड़ दें एवं बच्चों को धुल-मिट्टी ओर गंदगी में हमेशा लोट लगाने दें या फिर चौबीसों घंटे बीमारों की संगति में छोड़ दें। उन्हें स्वच्छता से रहना अवश्य सिखाएँ एवं उनका टीकाकरण भी अवश्य कराएँ। लेकिन थोड़ा-बहुत धूल-मिट्टी में अन्य बच्चों के साथ खेलने देने में कोई हर्ज़ नहीं है। तरह-तरह के बच्चों एवं धूल-मिट्टी का अर्थ है, तरह-तरह के जीवाणुओं के संपर्क में आना तथा उनसे मुकाबला करने की शक्ति अर्जित करना। इस प्रकिया में हो सकता है वे थोड़ा-बहुत बीमार भी पड़ें लेकिन इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है अंतत: उनका प्रतिरक्षा तंत्र मज़बूत ही होगा। इति।
-डॉ.गुरु दयाल प्रदीप

2 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया जानकारीपूर्ण आलेख प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद

Udan Tashtari said...

आभार इस जानकारीपूर्ण आलेख का.