2008/04/16

मकड़ी के जाले का सदुपयोग[भाग-१]


आज प्रस्तुत है यह लेख--
मकड़ी के जाले का सदुपयोग
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मकडियों तथा मकड़ियों के बनाए जाल से भला कौन नहीं परिचित है? तरह–तरह के रेशमी तंतुओं के उत्पादन में दक्ष होती है ये मकड़ियां। इन रेशमी तंतुओं का उपयोग ये मकड़ियां केवल शिकार फंसाने के लिए ही नहीं करतीं बल्कि अपने बिलों के द्वार को ढकने तथा इनकी भीतरी दीवारों पर नरम स्तर के निर्माण के लिए भी करती हैं। इसके अतिरिक्त अपने अंडों को सुरक्षित रखने के लिए ककून रूपी मजबूत आवरण के निर्माण तथा फंसे शिकार के चारों ओर मजबूत शिकंजा कसने में भी ये मकड़ियां इन तंतुओं का प्रयोग करती हैं। इसका एक ही तंतु इतना मज़बूत होता है कि इसका उपयोग ये मकड़ियां रस्सी के रूप में करती हैं जिसके बल ये सर्कस के निपुण कलाकार की तरह किसी भी ऊंचाई से पलक झपकते ही बड़ी सरलता पूर्वक नीचे उतर सकती हैं। कुछ छोटी मकड़ियां इन तंतुओं की सहायता से गुब्बारे जैसी संरचना का निर्माण कर उनकी सहायता से हवा में बह सकती हैं। दर असल ये मकडियां स्वाभाविक रूप से कुशल बुनकर एवं दक्ष शिकारी हैं और अपने इस रूप में प्रकृति की कृतित्व क्षमता का अदभुत उदाहरण हैं।
मकड़ियां हमारे पर्यावरण में कीट–पतंगों की संख्या को नियंत्रित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती ही हैं¸ साथ ही इनके द्वारा उत्पादित बारीक रेशमी तंतुओं का उपयोग ऑप्टिकल उपकरणों के 'क्रॉस हेयर्स' के निर्माण में किया जाता है। इसके अतिरिक्त मकड़ियों का उपयोग कुछ औषधियों के परीक्षण में भी किया जाता है¸ कारण– इन औषधियों का प्रभाव इनके द्वारा उत्पादित रेशमी तंतुओं तथा उनसे निर्मित जाल की गुणवत्ता पर पड़ता है। इनके अतिरिक्त रेशमी तंतुओं के और भी छोटे–मोटे उपयोग तो हैं ही¸ लेकिन हमारे वैज्ञानिक बंधु इतने पर ही भला कैसे संतुष्ट रह सकते हैं? वे तो इन तंतुओं की बरीकी एवं मज़बूती पर मुग्ध हैं और इस फेर में पड़े हुए हैं कि किस प्रकार इनका उत्पादन व्यापारिक स्तर पर किया जा सके तथा इनका उपयोग नाना प्रकार के ऐसे कार्यों में किया जा सके जिससे अर्थव्यवस्था पर बोझ भी कम पड़े एवं प्रकृति में प्रदूषण की मात्रा भी कम हो जाए। इस संदर्भ में किए जा रहे अनुसंधानों तथा उनसे जुड़ी उपयोगिता संबंधी संभावनाओं की चर्चा के पहले आइए इन मकड़ियों के बारे में जरा ठीक से जान लें।
सिवाय अंटार्कटिका के यत्र–तत्र–सर्वत्र यानि इस धरती पर जीव–जंतुओं के जीवन यापन के लिए उपयुक्त लगभग सभी स्थानों¸ यहां तक कि पानी में भी इन मकड़ियों की कोई न कोई प्रजाति मिल ही जाएगी। और हो भी क्यों न? कम से कम इनकी तीस हजार प्रजातियों के बारे में तो हम वर्तमान समय में भी जानकारी रखते हैं। फाइलम आर्थोपोडा के आर्डर अरैiक्नडा से संबंधित आठ पैरों वाले इन मांसाहारी जीवों की विभिन्न प्रजातियों का आकार ०.5 मिलीमीटर से ले कर 9 सेंटीमीटर तक हो सकता है। प्रजाति चाहे कोई भी हो¸ लगभग सभी में बारीक रेशमी तंतु के उत्पादन की क्षमता अवश्य होती है¸ साथ ही अधिकांश में मुख के पास विष–ग्रंथि युक्त डंक भी पाया जाता है। अधिकांश मकड़ियों के विष प्राय: कीट–पतंगों पर ही प्रभावी होते हैं। कुछ ही प्रजातियां ऐसी हैं जिनका विष रीढ़धारी जीवों तथा मनुष्यों के लिए कुछ सीमा तक हानिकारक है।
जैैसा कि पहले पहले भी बताया जा चुका है कि मकड़ियां दक्ष शिकारी होती हैं। इसके लिए ये तरह–तरह के हथकंडे अपनाती हैं। इनके शिकार अधिकांशत: छोटे–मोटे कीट–पतंगे होते हैं। कभी ये उनके पीछे दौड़ती हैं तो कभी घात लगा कर उनका इंतज़ार भी करती हैं। लेकिन अधिकांश प्रजातियां रेशमी तंतुओं द्वारा विशिष्ट प्रकार के जाल का निर्माण कर शिकार को फंसाने में यकीन रखती हैं। फंसे शिकार को अपने विष–डंक से मार डालती हैं और फिर उसके चारों ओर पाचक–रस का स्त्राव कर उन्हें बाहर से ही पचाती हैं। इस प्रकार के बाह्य–पाचन के फलस्वरूप निर्मित पोषक–रस को ही ये चूस सकती हैं¸ क्योंकि ये ठोस भोजन नहीं ग्रहण कर सकती हैं।
अब चूंकि जाल बना कर शिकार फंसाना ही इनका मुख्य व्यवसाय है तो आइए अब देखें कि इस कार्य के लिए इनके पास क्या–क्या हरबा–हथियार हैं और कैसे इनका उपयोग बारीक तंतुओं के उत्पादन एवं लगभग अदृश्य जाल के निर्माण में किया जाता है।
[जारी है.....]

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